अमेरिकी डॉलर, ईसीबी और फेड की नीतियों में अंतर के बीच अपनी कमजोरी को आगे बढ़ा रहा है।
अमेरिका और यूरोज़ोन में ब्याज दरों को लेकर अपेक्षाओं में तेज़ अंतर बढ़ने के कारण अमेरिकी डॉलर पर दबाव लगातार बढ़ रहा है। यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ECB) 2026 में ब्याज दर बढ़ाने की तैयारी कर रहा है, जबकि फेडरल रिज़र्व ब्याज दरों में कटौती जारी रखने की योजना बना रहा है। यही कारण है कि डॉलर की कमजोरी लंबे समय तक बनी हुई है।
स्वैप बाज़ारों को उम्मीद है कि 2026 के अंत तक ECB की ब्याज दरों में 0.06 प्रतिशत अंक की बढ़ोतरी होगी—जो केवल एक हफ्ते में आया एक बड़ा बदलाव है। यह यूरोज़ोन में महंगाई के टिके रहने और संतोषजनक आर्थिक वृद्धि पर भरोसे को दर्शाता है। वहीं, फेडरल रिज़र्व “सॉफ्ट लैंडिंग” सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है और उससे दो और ब्याज दर कटौतियों की उम्मीद की जा रही है।
वैश्विक घटनाक्रम भी अमेरिकी डॉलर पर दबाव बढ़ा रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया और कनाडा ब्याज दरें बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं, जबकि बैंक ऑफ इंग्लैंड से 2026 की गर्मियों तक ब्याज दरों में कटौती रोकने की उम्मीद है। विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका को छोड़कर अधिकांश प्रमुख केंद्रीय बैंक अगले साल अपनी नीतियों की दिशा बदलेंगे, जिससे 2026 एक निर्णायक मोड़ बन सकता है। यदि ब्याज दरों का अंतर कम होता है, तो कम रिटर्न देने वाले डॉलर की मांग और भी घट सकती है। 2025 में ही अमेरिकी मुद्रा प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले 8% से अधिक गिर चुकी थी।